ग्लूकोस की बेकार पड़ी बोतलो का ऐसा इस्तेमाल नहीं देखा होगा आपने, मध्य प्रदेश के आदिवासी किसान अपना रहे है, ये अनोखी सिंचाई तकनीक

भारत देश एक कृषि प्रधान देश है। और कई लोग पारम्परिक तरीके से खेती करते है। और कई किसान तो ऐसे है , जो कि नई नई तकनीकों के माध्यम, से खेती करते है। और उन्हें बहुत फायदा होता है। देश के किसानो की हमेशा एक समस्या रेह्ती है कि किसानो को उनकी फसलों के सही दाम नहीं मिलते है। लेकिन आज के किसान बहुत जागरूक हो गया है। क्योकि आजकल तकनीक का ज़माना है। और हर कोई तकनीक के इस्तेमाल से अपनी फसलों में कुछ नयापन लाकर न सिर्फ अपनी पारम्परिक तरीके को बदल रहे है, बल्कि उन तकनीकों के माध्यम से वो अपनी आय में भी वृद्धि कर रहे है। और अपना जीवन स्तर भी सुधार रहे है।

ये तकनीक है अकाल में वरदान
ये तकनीक है अकाल में वरदान

ये तकनीक है अकाल में वरदान

बता दे कि मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले झाबुआ में कई आदिवासी किसान के लिए एक प्रमुख समस्या थी कि, वहां के इलाके में सूखा पड़ने से वहां की फसल बर्बाद हो गयी। जिसकी वजह से वहां के आदिवासी किसानो को बहुत सी समस्या का सामना करना पड़ रहा था। वहीँ के एक आदिवासी किसान रमेश बारिया ने भी यही समस्या पर बहुत गौर किया। और अकाल के बीच में ही पैदावार करने की इच्छा रखते थे। और फसल उद्पादन अच्छा हो, इसके लिए प्रयास करते थे।

रमेश बारिया नाम के इस किसान ने कृषि वैज्ञानिको से बात की
रमेश बारिया नाम के इस किसान ने कृषि वैज्ञानिको से बात की

किया कृषि वैज्ञानिको से सम्पर्क

रमेश बारिया नाम के इस किसान ने वर्ष 2009-2010 में NAIP (राष्ट्रीय कृषि नवाचार परियोजना) KVK वैज्ञानिकों से संपर्क किया। और अपनी समस्या के बारे में उनसे बात भी की। और उनके द्वारा सुझाए गए सुझावों को अपनाया। और खेती के एक छोटे से हिस्से में खेती शुरू की। और उनके अनुसार ही बताए गए सब्जी की खेती शुरू कर दी। जिसमे उन्होंने करेला, स्पंज लौकी को उगाना शुरू किया। और उन्हें जल्द ही इसका परिणाम भी मिलने लगा।

पानी की दिक्क्त का ये दिया सुझाव (ग्लूकोस)

बता दे कि सब्जी बोने के बाद रमेश ने एक नर्सरी का निर्माण तो खेत में कर दिया ,लेकिन पानी की दिक्क्त की वजह से रमेश को काफी परेशानियो का सामना करना पड़ा। और उसके बाद फिर से उसने NAIP (राष्ट्रीय कृषि नवाचार परियोजना) के विशेषज्ञों से सम्पर्क करने की ठानी। और इस बार उन्हें विशेषज्ञों ने एक अनोखा ग्लूकोस आईडिया बताया।

ग्लूकोस की बोतल से ड्रिप सिंचाई
ग्लूकोस की बोतल से ड्रिप सिंचाई

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ग्लूकोस की बोतल से ड्रिप सिंचाई

दरअसल उन वैज्ञानिको ने रमेश को ग्लूकोस की बोतल से ड्रिप सिंचाई करने के लिए कहा। जिसके अनुसार उन्होंने 20 रुपये किलोग्राम की ग्लूकोस की प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग किया। और उसका सही ढंग से इस्तेमाल करने के लिए उन्होंने बोतल के ऊपर के हिस्सों को काट दिया। ताकि आसानी से ड्रॉपिंग की जा सके। और इस तरह से प्लास्टिक की बेकार हो चुकी बोटलो का भी इस्तेमाल किया जा सकेगा।

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