कहते है कि सपने उसी के पुरे होते है, जो उन्हें सच करने के लिए हर तरह से जतन और प्रयास करता है। और जो संघर्ष करता है। सफलता भी उसे ही मिलती है। लेकिन कई लोग ऐसे भी है, जो कि एक बार असफल होने पर दोबारा प्रयास नहीं करते है। और हारकर बैठ जाते है। और जो व्यक्ति निरंतर प्रयास करता है। सफलता वही पाता है। और सफलता उसी के कदम चूमती है। और मुश्किलों के आगे घुटने टेकने से इंसान कमज़ोर हो जाता है। लेकिन कई लोग ऐसे भी है, जो कि निरंतर असफ़ल होने के बाद भी निरंतर सफलता की आस में प्रयास को जारी रखती है ,और एक न एक दिन सफलता हासिल कर ही लेते है। ऐसे ही लोगों में से एक है शिवाकांत कुशवाह। जिन्होंने लगातार लगभग 9 बार असफलता देखी। लेकिन 10 वी बार सफलता हासिल करके सिविल जज बन ही गए ,अब शिवाकांत कुशवाह न सिर्फ इस देश के लिए मिसाल है। बल्कि सभी के लिए एक प्रेरणा है।
माता पिता ने मज़दूरी करके पढ़ाया शिवाकांत कुशवाह को
सबसे खास बात तो ये है, कि शिवाकांत कुशवाह को उनके माता पिता ने महंत मजदूरी करके पढ़ाया है। और उनके माता पिता ने भी उनके लिए सपने संजोय है। जिसको कि आज शिवाकांत ने सिविल जज बनकर सफल कर दिखाया है। वाकई ही बहुत हिम्मत चाहिए इतनी बार असफल होने के बाद दोबारा प्रयास करने के लिए। और बहुत ही कम लोग ये हिम्मत कर पाते है। कि इतनी बार हारने के बाद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। और लगातार प्रयास जारी रखा। जिसका परिणाम उन्हें इस असफलता से मिल ही गया। और वो सिविल जज बनने में कामयाब हो गए।
माता के देहांत के बाद पिता ने संभाला घर को
कुछ समय के बाद शिवाकांत की माता जी का देहांत हो गया। जिसके बाद उनके पिता ने ही मज़दूरी करके अकेले ही सारे परिवार को पाला और बड़ा किया था। और शिवाकांत ने बहुत ही मजबुरी भरे दिनों का सामना किया। लेकिन हार नहीं मानी थी। जिसका परिणाम उन्हें उनकी सफलता ने दे दिया। और ऐसे में शिवाकांत की पढ़ाई पर बहुत असर पड रहा था। जिसके लिए उन्होंने सब्जी का ठेला तक चलाया। और सब्जी बेचकर पढ़ाई की।
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शिवाकांत कुशवाह ठेला चलाकर सब्जी बेचीं
शिवाकांत कुशवाह ने अपना खर्चा चलाने के लिए सब्जी भी बेचीं , और पढ़ाई का खर्चा निकाला। इतने मुश्किले भरे दिनों में उन्होंने काफी संघर्ष किया। और सफलता का मुकाम हासिल किया। और अपने 10 वे प्रयास में सिविल जज बन गए है।
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