भारतीय पौराणिक आख्यानों के अनुसार जब भी धर्म की हानि और अधर्म का विस्तार होता है, तब संसार के उत्थान के लिए भगवान विष्णु धरती पर अवतरित होते हैं। इसी क्रम में अनेक बार श्री विष्णु के कई अवतारों की कथा पढ़ने में आती है। इन्हीं में से दो अवतार ऐसे हुए, जिन्होंने परिवार में रहते हुए धर्म की स्थापना और विस्तार किया।ये अवतार थे त्रेता युग में भगवान राम और द्वापर युग में भगवान कृष्ण। इनमें से भी भगवान राम ने जीवन में आदर्शों का महत्व प्रमुखता से स्थापित किया, वहीं श्री कृष्ण ने एक आम व्यक्ति की क्षमताओं, आकांक्षाओं और परिस्थितियों के अनुसार सटीक निर्णय लेने को अपने जीवनक्रम में स्थान दिया।अपने किसी भी रूप में, आयु के किसी भी पड़ाव में श्री कृष्ण भगवान के रूप में स्थापित ना होकर, पूजनीय ना होकर साधारण ही बने रहे और असाधारण कार्य को संभव बना मानव के देव बनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। इसी क्रम में एक रोचक जानकारी उनके परिवार, उनके गृहस्थ जीवन के बारे में मिलती है।
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कृष्ण की 16 हजार 108 रानियां श्री कृष्ण की महारासलीला के बारे में तो सभी भक्तजन जानकारी रखते हैं, जब गोकुल में उन्होंने अपनी सभी गोपिकाओं के संग एक साथ अनेक रूप धारण कर महारास रचाया था। इसी तरह की एक जानकारी उनके परिवार के बारे में मिलती है। पुराणों के अनुसार श्री कृष्ण की 16 हजार 108 रानियां थीं।
श्री कृष्ण की 16108 पत्नियां
कृष्ण ने 16 हजार रूपों में विवाह रचाया यह कैसे संभव हुआ, इसके बारे में पुराणों में उल्लेख मिलता है कि एक मानसिक रोगी ने अमरता पाने के लिए 16 हजार कन्याओं को बलि देने के लिए कैद किया हुआ था। श्री कृष्ण ने इन कन्याओं को कारावास से मुक्त कराया और जब इनके परिवार वालों ने चरित्र के नाम पर इन्हें अपनाने से इनकार कर दिया, तब श्री कृष्ण ने 16 हजार रूपों में प्रकट होकर एक साथ उनसे विवाह रचाया। इस विवाह के अलावा श्री कृष्ण ने कुछ प्रेम विवाह भी किए।
मैं इस जन्म में एक पत्नी व्रत का संकल्प ले चुका हूं… इनके बारे में माना जाता है कि त्रेतायुग में कई युवतियों ने श्री राम से विवाह का वरदान मांगा था। तब श्री राम ने कहा था कि मैं इस जन्म में एक पत्नी व्रत का संकल्प ले चुका हूं, लेकिन अगले जन्म में मैं तुम सभी से विवाह कर तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करूंगा। द्वापर में श्री कृष्ण के रूप में जन्म लेकर श्री राम ने अपने पूर्व जन्म के वरदान को सार्थक किया। इस तरह द्वापर में श्री कृष्ण ने 108 विवाह और किए।
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अपने गृहस्थ जीवन के हर धर्म का समुचित पालन
अपनी किसी पत्नी को निराश नहीं किया आनंद की बात यह है कि इतने विवाह करने के बाद भी श्री कृष्ण ने कभी अपनी किसी पत्नी को निराश नहीं किया। अपनी लीला से वह इतने ही रूप रखकर आठों पहर अपनी 16 हजार 108 रानियों के साथ रहते और अपने पतिव्रत धर्म का पालन करते थे।
1 लाख 61 हजार 80 पुत्र इतना ही नहीं, उनकी सभी स्त्रियों के 10-10 पुत्र और एक-एक पुत्री भी उत्पन्न हुई। इस प्रकार उनके 1 लाख 61 हजार 80 पुत्र और 16 हजार 108 कन्याएं थीं। इस प्रकार श्री कृष्ण भारत के सबसे बड़े परिवार के मुखिया बने, जिन्होंने अपने गृहस्थ जीवन के हर धर्म का समुचित पालन कियाहमारे इस आर्टिकल को पढ़ने के लिए आप सबका धन्यवाद और इस प्रकार की ओर भी रोचक खबरे जानने के लिए हमारी वेबसाइड Samchar buddy से जुड़े रहे।