पिता ने चाय बेचकर पढ़ाया बेटे को ,बड़े भाई से मिली प्रेरणा गरीबी को मात देकर बन गए आईएएस अफसर

कहते है सफलता तब भी पायी जा सकती है। जब आपके पास संसाधन कम हो, क्योकि आपके होंसले और आपके सपने आपको हिम्मत दे ही देते है। और कुछ लोगों की सफलता की दासतां तो ऐसी होती है कि, हमे कई बार हैरानी भी होती है कि इतने कम संसाधनो में सफलता मिलनी कितनी मुश्किल होती है।और लोग सफलता को अपने नाम कर लेते है। ऐसे ही एक शख्स है देशल दान रतनू।जिनके पिता जी ने चाय स्टाल लगाकर अपने परिवार को भी पाला। और अपने बच्चो को भी पढ़ाया। और आज उनके दूसरे बेटे देशल दान रतनू ने आईएएस बनकर उसकी इस मेहनत को सफल कर दिखाया है। और समाज में एक मिसाल कायम कर दी है।

 देशल दान जी के पिता जी पहले खेती का काम करते थे।
देशल दान जी के पिता जी पहले खेती का काम करते थे।

पिता ने खेती जे साथ साथ किया चाय का काम

बता दे कि, देशल दान रतनू जी के पिता जी पहले खेती का काम करते थे। लेकिन उससे कुछ खर्चा नहीं निकल पा रहा था। और मुनाफा नहीं होता था, जिसके बाद उनके पिता जी ने ख़ती के साथ चाय का स्टाल लगाने की सोची। जिसमे देशल भी उनकी मदद करते थे। और साथ साथ अपनी पढ़ाई भी करते थे। हालांकि 7 भाई बहनो का साथ साथ घर की पूरी जिम्मेदारी उनके और पिता के सर पर ही थी। और उन्होंने बहुत ही अच्छे ढंग से उन जिम्मेदारियो को संभाला।

पिता जी ने ख़ती के साथ चाय का स्टाल लगाने की सोची।
पिता जी ने ख़ती के साथ चाय का स्टाल लगाने की सोची।

देशल दान रतनू भाई से मिली लक्ष्य की प्रेरणा

देशल के बड़े भाई इंडियन नेवी में थे जिनसे उन्हें बहुत प्रेरणा मिलती थी। वो जब भी घर आते थे। उन्हें इंडियन फोर्स या सिविल सर्विस में जाने की सलाह देते थे। जिसे देशल ने भी उनकी बात मानी। और सिविल सर्विस में जाने का फेसला लिया। और उसके लिए पूरी जी जान से जुट गए। लेकिन कुछ समय के बाद खबर आयी कि देशल के बड़े भाई की ऑन ड्यूटी ही डेथ हो गयी। जिससे पूरा परिवार सदमे में आ गया और देशल ने उस वक़्त उनके सपने को पूरी मजबूती के साथ पूरा करना का निर्णय ले लिया।

देशल ने बिना कोचिंग के ही पहले प्रयास में पास की यूपीएसी परीक्षा
देशल ने बिना कोचिंग के ही पहले प्रयास में पास की यूपीएसी परीक्षा

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देशल दान रतनू बिना कोचिंग के ही पहले प्रयास में पास की यूपीएसी परीक्षा

देशल सिर्फ 10 में थे, जब उनके भाई की डेथ हई। लेकिन उन्होंने उसी वक़्त से अपनी पढ़ाई पर ओर भी गंभीरता से ध्यान देना शुरू किया। और आगे कोटा से पूरी करने चले गए। लेकिन उनके पास कोचिंग के लिए पैसे नहीं थ। लेकिन उन्होने हार नहीं मानी। और खुद से ही भाई के सपने को ध्यान में रखते हुए खुदे से ही तैयारी की और यूपीएसी की के पहले ही प्रयास में सफलता भी हासिल की। और 82 वी रैंक के साथ आईएएस बन गए।

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