किन्नर समाज के प्रति समाज की कुछ अलग ही अवधारणा है। और किन्नर को आज भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है। लेकिन किन्नर भी समाज का ही एक रूप है। और इन्हे भी भगवान ने ही बनाया है। और इन्हे भी सम्मान मिलना ज़रूरी है। एक 30 साल की किन्नर महिला के बारे में हम आपको बताएंगे। जिन्होंने करीब अपनी इस अपनी इस उम्र में भी 150 गरीब बेटियों का पालन पोषण करके उनका खर्चा उठा रही है ,.जो वाकई ही मिसाल है। लीलाबाई वाकई इस समाज के लिए एक प्रेरणा है। जिस ज़माने में हम आज रह रहे है। उसमे किन्नर समाज को भी कानूनी तौर से तो समाज का एक हिस्सा माना जाता है, लेकिन लोगों की सोच को बदल सकता है। आज भी किन्नर को घृणित नज़रो से देखी जाता है। लेकिन इन सबकी की सोच से परे लीलाबाई भी इसी समाज में रहकर एक मिसाल पेश कर रही है।
बिना जन्म दिए बन गयी है माँ
लीलाबाई को इस बात से ज़रा भी फर्क नहीं पड़ता है कि, समाज उन्हें किस नज़र से देखता है। और न ही वो इस बारे में ज्यादा सोचती है। वो बस अपना काम करती है। आज लीलाबाई ने भले ही इन बेटियों को अपनी कोख से जन्म न दिया हो, लेकिन वो फिर भी इन सब गरीब बेटियों के लिए माँ स्वरुप है। क्योकि वो बिलकुल इनसे सगी माँ के जैसे ही ख्याल रखती है। और इसीलिए लीलाबाई उन बेटियों के लिए पूजनीय है। और गरीब माता पिता के लिए लीलाबाई एक माँ का कर्तव्य निभाती है। और उनके सारे लालन पालन की ज़िम्मेदारी ले लेती है।
एक घटना ने बदल दिया मन
दरअसल एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि, उसने लीलाबाई के जीवन को पूरी तरह से बदल कर रख दिया था। दरअसल लीलाबाई के बस्ती के पास एक गरीब परिवार था। जिनके पास एक बेटी भी थी। और उसका वो खर्चा उठाने में असमर्थ थे। तो उनकी बेटी को लीलाबाई ने गोद ले लिया, खर्चा उठाने लगी। और फिर उसकी शादी करवा दी। जिसके बाद उन्हें बहुत सुकून मिला। और यही वो दिन था, जिस दिन लीला बाई ने बस्ती की और भी गरीब बेटीयो की जिम्मेदारी सम्भालने का जिम्मा ले लिया।
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लीलाबाई शिक्षा में भी करती है मदद
लीलाबाई kinner सिर्फ गरीब बेटियों के लिए ही मदद नहीं करती बल्कि, वो ऐसे गरीब बच्चो की न भी मदद करती है। जिनके पास स्कूल की फीस भरने के पैसे नहीं होते है। और वो उन्हें फ्री में जुते पोषाक और किताबे उपलब्ध करवाती है , वाकई लीलाबाई असल मायने में एक सच्ची इंसान है। और ये इंसानियत किसी भी धर्म से बढ़कर है।
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