नवरात्रि के दौरान गुजरात में गरबा डांस की धूम रहती है। घरों के अलावा बाहर भव्य समारोहों में भी महिलाएं पारंपरिक कपड़ों में देवी गीतों पर गरबा करती नजर आती हैं। उनके साथ पुरुष भी झूमते दिखते हैं। पर क्या आपको पता है कि अहमदाबाद में एक ऐसा समुदाय भी है, जिसके पुरुष 200 साल पुरानी अपनी परंपरा को जिंदा रखने के लिए साड़ी पहनकर गरबा करते हैं? गुजरात के वडोदरा में स्थित अंबा माता मंदिर में नवरात्री की अलग ही धूम देखने को मिलती है। यहां पुरुष गरबा खेलकर सदियों पुरानी परंपरा को निभाते हैं।कि ये पुरुष किस समुदाय के हैं और साड़ी पहनकर गरबा करने के पीछे इनकी क्या परंपरा है।अहमदाबाद में रहने वाले बड़ोत समुदाय के पुरुष सादु माता मंदिर में पूजा करते हैं। हर साल नवरात्रि के दौरान अष्टमी के दिन ये महिलाओं की तरह साड़ी पहनकर गरबा करते हैं। साथ ही, देवी मां से अपने बच्चों के लिए दुआ भी मांगते हैं।
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200 साल पुरानी परंपरा निभाते आ रहे यहां के पुरुष
दरअसल, अहमदाबाद के पुराने शहर में बड़ोत समुदाय की बड़ी आबादी रहती है। इस समुदाय के लोग सादु माता मंदिर में पूजा करते हैं। अष्टमी के दिन यहां के पुरुष साड़ी पहनकर गरबा करते हैं। ये एक ऐसी परंपरा है कि जिसके माध्यम से बड़ोत समुदाय के लोग देवी के प्रति आभार जताते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि पुरुष यहां महिलाओं की वेशभूषा में नृत्य करते हैं ताकि उनकी मनोकामनाएं पूरी हो सकें। खासकर उनकी संतान स्वस्थ रहे और उसकी लंबी आयु हो।
जब बात परंपरा निभाने की आती है तो वो कैसा भी कार्य क्यों न हो हर व्यक्ति उस परंपरा को निभाता ही है। वही हाल गुजरात के वडोदरा में माता अम्बा मंदिर की है। आपको हैरानी होगी कि यहां पिछले 400 सालों से पुरुष ही गरबा खेल रहे हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब वड़ोदरा में गायकवाड़ से पहले इस्लामी शासकों का शासन था तब स्त्रियों को परदे में रहना पड़ता था। देवी मां की पूजा-अर्चना के लिए पुरुष ही स्त्री का वेश धारण कर के यहां गरबा खेलते थे। गौर हो कि घड़ियाली पोल अंबा माता मंदिर के गरबा में आज सारे पुरुष ही गरबा खेलते हैं।
शेरी गरबा के नाम से प्रसिद्ध है यह उत्सव
यह अनोखा गरबा उत्सव पूरे अहदमाबाद में शेरी गरबा के नाम से प्रसिद्ध है। इसके पीछे की परंपरा दो सदियों से भी ज्यादा पुरानी बताई जाती है। ऐसा माना जाता है कि लगभग 200 साल पहले इस क्षेत्र में रहने वाली ‘सदुबा’ नामक महिला ने यहां के पुरुषों को शाप दे दिया था। इसका प्रायश्चित करने के लिए शेरी गरबा शुरू किया गया था। सादु माता के नाम पर एक मंदिर बना है जहां पुरुष साड़ी पहनकर प्रार्थना करते हैं और देवी से क्षमा मांगते हैं।
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पुरुषों ने नहीं की मदद तो देवी ने अपने बच्चे को मार डाला
सदुबा या सादुबेन देवी ने अपनी गरिमा की रक्षा करने में मदद से इनकार करने पर इलाके के पुरुषों को शाप दे दिया था। इसके बाद उन्होंने अपने बच्चे की हत्या कर दी थी। देवी की मदद ना कर पुरुषों ने जो गलती की थी, उसका बदला लिए जाने का डर उन्हें आज भी सताता है।
अपनी गलती के प्रायश्चित के तौर पर वह शेरी गरबा की परंपरा को निभा रहे हैं। वे अष्टमी के दिन को बेहद महत्वपूर्ण मानते हैं। साथ ही, सालों से अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए सदुबा देवी को धन्यवाद भी देते हैं।हमारे इस आर्टिकल को पढ़ने के लिए आप सबका धन्यवाद और इस प्रकार की ओर भी रोचक खबरे जानने के लिए हमारी वेबसाइड Samchar buddy .com जुड़े रहे हैं।