मुग़ल सम्राट अकबर ने रामभक्त तुलसीदास को बनाया बंदी तो हनुमान जी ने इस तरह बचाया?

तुलसीदास जी को श्रेष्ठतम कवियों में स्थान प्राप्त हे। जिनकी रचनाएं लोकजीवन की सहज भाषा में होती थी। बात तब की हे जब सम्राट अकबर को तुलसीदास जी के बारे में पता चला कि उन्होंने राम की भक्ति से कुछ ऐसे चमत्कार भी किये हैं जिन्हें अकबर सहज रूप में स्वीकार नहीं कर पा रहा था। लेकिन रचनाओं की प्रसिद्धि सुनकर उन्होंने तुलसीदास जी को बुलावा भेजा कि वे तुरंत ही उनके सामने हाजिर हो जाएँ ताकि अपने लिए भी अपने मुताबिक़ रचनाएं करा पाए। लेकिन इस बात को सुनकर कि उन्हें हाजिर होने के लिए अकबर का आदेश मिला हे उन्होंने इस लिए मना कर दिया। क्योंकि वे केवल अपने प्रभु का आदेश मानेंगे इसके अलावा किसी और का नहीं।

हनुमान से तुलसीदास की याचना
हनुमान से तुलसीदास की याचना

तुलसीदास को बंदी बनाया तो अकबर को माफी मांगनी पड़ गई

तुलसीदास की लेखनी पर अकबर की नजर
तुलसीदास की लेखनी पर अकबर की नजर

अपनी नाफरमानी अकबर को रास ना आयी और उन्होंने तुलसीदास जी को बंदी बनाकर अपने सामने प्रस्तुत करने को कहा। जिसके बाद जब तुलसीदास जी को बंदी बनाकर लाया गया तो उन्होंने परम्परा के मुताबिक़ अकबर के दरबार में उनके सामने झुकने से मना कर दिया और कहा कि प्रभु श्रीराम के अलावा वे किसी और के सामने नहीं झुकेंगे। जिससे क्रोधित होकर अकबर ने तुलसीदास जी को बंदी बनवा दिया और कहा कि हम चाहें तो अब तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकते हैं। देखते हैं कि तुम्हारे प्रभु तुम्हें हमसे कैसे बचते हैं। जिसके जवाब में तुलसीदास जी कहते हैं कि उनके लिए यह तो बहुत छोटा काम हे। जिसके बाद वे हनुमानचालीसा पढ़ने लगे।

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जब अकबर के दरबार में आ धमकी वानर सेना

तुलसीदास पर रामकृपा
तुलसीदास पर रामकृपा

इस बात पर अकबर ने जानना चाहा कि वे क्या बोल रहे हैं तो बीरबल ने कहा कि वे राम भक्त हनुमान जी का स्मरण कर रहे हैं। जिसके बाद सहसा ही भक्त तुलसीदास के आव्हान पर वानर सेना अकबर के आँगन में आ धमकी ओर अकबर की सेना पर हमला करने लग गई। जिससे घबराकर सेना तीतर बितर हो गई। जिसके बाद बीरबल ने अकबर को तुलसी दास को सम्मान सहित बंदी मुक्त करने की युक्ति सुझायी।

जिसके बाद घबराहट में अकबर ने तुलसीदास जी से माफी करार करके उन्हें सम्मान सहित उनके घर भिजवाने को अपने सैनिकों से कहा। जिसके बाद ही वानरों का गुस्सा शांत हुआ। इसी क्रम में कई प्रकार की कहानियां प्रचलित हैं जो इस बात को दिखाती हैं कि अकबर शक्तिशाली सम्राट था। लेकिन तुलसीदास जी की व्यक्तिगत आस्था और छवि के आगे सम्राट अकबर को भी नतमस्तक होना पड़ा। और उस काल के अन्य अपने समकालीन कवियों की तरह तुलसीदास जी ने काम नहीं किया। राजदरबार के लिए रचनाएं नहीं की बल्कि केवल ईश्वर की लीलाओं पर आधारित रचनाएं की। जो सहज भाषा में थी जिस कारण वे ईश्वर की कृपा पात्र बने और आम जनमानस में उनकी रचनाएं लोकप्रिय हुई।हमारे इस आर्टिकल को पढ़ने के लिए आप सबका धन्यवाद और इस प्रकार की ओर भी रोचक खबरे जानने के लिए हमारी वेबसाइड ”Samchar buddy” से जुड़े रहे।

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