घरों, मंदिरों और धार्मिक अनुष्ठानो में आटे के दीये जलाने के पीछे ख़ास रहस्य हे। जिसकी वजह इसकी खूबियों से लोग परिचित हैं, जो शास्त्रसम्मत हैं ।जिस कारण आम जनो में यह विधि काफी लोकप्रिय हुई हे। प्राचीन समय से ही युद्ध प्रिय आर्य जाति और उनके देवता भी अस्त्र शस्त्रों से सुशोभित होते थे और वे जब कहीं पर युद्ध छेत्र में जाते तो मिट्टी के दीये ले जाना आसान नहीं था, जिसके बाद उन्होंने सरल ढंग की आटे के दीये वाली विधि तैयार की। जिसमे समय के साथ ही कई प्रकार के पूजा विधान जुड़ते गए और यह विधि लोकप्रिय हो गई, साथ ही यह दिया माना जाता हे कि दिया बुझने में बाद दीये का आटा अतृप्त आत्माओं के हिस्से में जाकर उन्हें तृप्त करता हे, जो बहुत ही अच्छी बात हे। आधुनिक परिपेक्ष में देखा जाय तो यह दीये पर्यावरण के अनुकूल हैं, जिन्हें गंगा पूजन के लिए कारगर रूप से उपयोग में लाया जा सकता है। जिससे प्रदूषण भी नहीं होगा और वहाँ की स्थानीय मछलियों को भी चारा मिलेगा।
1 अगर किसी की आकांक्षा पूरी हो जाती हे तो वह कुछ संख्या में आटे के दीये जलाकर अपना संकल्प पूरा करता हे।जिसके लिए गूंथा हुआ आता दीये की सेव् देकर उसमे तेल और रुई डालकर जलाया जाता हे।
2 ख़ास मौकों पर आटे के दीये में तेल की बजाय घी का दीपक भी दिया जाता हे जो ज्यादा अच्छा फलदायक माना जाता हे लेकिन घी के महंगे होने के कारण यह प्रचलन कम हुआ हे। जिसमे घी की जगह तेल ने ले ली हे।
3 तांत्रिक अनुष्ठानो में भी आटे के दीये का विशेष विधान हे जिसपर कई बार चार सिरों वाला दिया बनाकर भी जलाया जाता हे। जो चारों दिशाओं का प्रतीक होता हे।
4 भगवान् राम , हनुमान , भगवान् विष्णु , देवी , भगवान् शिव , श्रीकृष्ण वगैरह सबको यह इस प्रकार का दीपक चढ़ाया जाता हे। ख़ास पूजा में इनका विधान बताया गया हे।
5 आटे के दीये का उपयोग अन्न धन की वृद्धि के लिए भी किया जाता हे जिससे वातावरण में सकारात्मक प्रभाव पड़ता हे।
6 आटे के दीयों के विशेष विधानों में ग्रह क्लेश को शांत करना, संतान प्राप्ति की इच्छा से पूजा करना, विवाह बाधा दूर करना , ज्योतिषीय समाधान के लिए पूजा, बीमारी को दूर करने के लिए, कानूनी पचड़ों से रक्षा के लिए पूजा विधान, अन्न धन में बरकत के लिए आटे के दीयों को जलाया जाता हे।
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7 आटे के दीये कुछ निश्चित होते हैं जिनकी संख्या 1, 4 , 11 , 27 , 56 , 108 , 1008 भी हो सकती हे। जिन संख्याओं का पालन करना शुभ होता हे।
8 आटे के दिए जलाने के पश्चात जब पूजा समाप्त हो जाय तब भी इन दीयों को तोड़ना नहीं चाहिए। और पशुओं को भी नहीं खिलाना चाहिए। बल्कि किसी नदी में इन्हें प्रवाहित कर देना चाहिए।
9 जिन दम्पत्तियों को संतान प्राप्ति नहीं हो पाती वे किसी ख़ास मंदिर में जाकर आटे के दीये हाथ में जलाकर अपने आराध्य की पूजा करते हैं। और कुछ लोग जो बड़ी त्याग तपस्या वाले होते हैं वे जितनी देर तक दिया जलता हे उतनी देर तक भी खड़े रहकर पूजा करके मनोइच्छित फल मांगते हैं।
10 आटे के दीये बनाने की बहुत ही सरल विधि हे जिसमे हल्दी और पानी मिलाकर गूंथे हुए आटे को दीये का आकार दिया जाता हे। जिसके बाद उसमे तेल डालकर बाती जलाई जाती हे।
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