सती और पार्वती के पति भगवान शंकर को सदाशिव के कारण शिव भी कहा जाता है। हम इन्हीं भगवान शंकर की बात करेंगे जिन्हें महादेव भी कहा गया है। भगवान शंकर के बारे में कुछ इस तरह की भ्रंतियां फैली हैं जोकि अपमानजनक है। वे लोग इसके दोषी हैं, जो जाने-अनजाने भगवान शिव का अपमान करते रहते हैं। यदि आप भगवान शंकर के भक्त हैं तो आपको यह जान और सुन कर धक्का लगना चाहिये, क्योंकि भगवान शंकर हिन्दू धर्म का मूल तना है, रीढ़ है। रामचरित मानस में भगवान राम कहते हैं कि ‘शिव का द्रोही मुझे स्वप्न में भी पसंद नहीं।
अपराधियों का साथी या उसे नजरअंदाज करने वाला भी अपराधी होता है। शिव के मंदिर में जाने और वहां पूजा, प्रार्थना करने के कुछ नियम होते है। यह सही है कि भगवान शंकर भोलेनाथ है। वे बड़े दयालु हैं, आपको क्षमा कर देंगे। लेकिन आपने उनके मंदिर में जाकर किसी भी तरह से नियम विरूद्ध कार्य किया या अपमान किया है तो आपको माता कालिका देख रही है। भगवान भैरव और शनिदेव भी देख रहे हैं। शैव पंथ पर चलाना या शिव की पूजा करना कठिन है। यह अग्निपथ है।
क्या शिवलिंग का अर्थ शिव का शिश्न है?
यह दुख की बात है कि बहुत से लोगों ने कालांतर में योनि और शिश्न की तरह शिवलिंग की आकृति को गढ़ा और वे उसके चित्र भी फेसबुक और व्हाट्सऐप पर पोस्ट करते रहते हैं। वे इसके लिए कुतर्क भी देते रहते हैं। उक्त सभी लोगों को मरने के बाद इसका जवाब देना होगा, क्योंकि शिव का अपमान करने वाला किसी भी परिस्थिति में बच नहीं सकता। शिव से ही सभी धर्म है और शिव से ही प्रलय भी।
दरअसल, शिवलिंग का अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादी स्वरूप। शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। जिस तरह भगवान विष्णु का प्रतीक चिन्ह शालिग्राम है उसी तरह भगवान शंकर का प्रतीक चिन्ह शिवलिंग है। इस पींड की आकृति हमारी आत्मा की ज्योति की तरह होती है।
वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। यही सबका आधार है। बिंदु एवं नाद अर्थात शक्ति और शिव का संयुक्त रूप ही तो शिवलिंग में अवस्थित है। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना की जाती है।
स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनंत शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है। वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनंत ब्रह्मांड (ब्रह्मांड गतिमान है) का अक्स/धुरी ही लिंग है। पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है जैसे- प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, ऊर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्मांडीय स्तंभ लिंग आदि। लेकिन बौद्धकाल में धर्म और धर्मग्रंथों के बिगाड़ के चलते लिंग को गलत अर्थों में लिया जाने लगा जो कि आज तक प्रचलन में है।
ब्रह्मांड का प्रतीक ज्योतिर्लिंग
शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा की तरह है। यह शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड में घूम रहे पिंडों का प्रतीक है, कुछ लोग इसे यौनांगों के अर्थ में लेते हैं और उन लोगों ने शिव की इसी रूप में पूजा की और उनके बड़े-बड़े पंथ भी बन गए हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने धर्म को सही अर्थों में नहीं समझा और अपने स्वार्थ के अनुसार धर्म को अपने सांचे में ढाला।
शिवलिंग का अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादी स्वरूप। शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है। वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड का अक्स/धुरी ही लिंग है। पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है।
जैसे– प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, उर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ लिंग आदि। लेकिन बौद्धकाल में धर्म और धर्मग्रंथों के बिगाड़ के चलते लिंग को गलत अर्थों में लिया जाने लगा जो कि आज तक प्रचलन में है।
शिव की दो काया है। एक वह, जो स्थूल रूप से व्यक्त किया जाए, दूसरी वह, जो सूक्ष्म रूपी अव्यक्त लिंग के रूप में जानी जाती है। शिव की सबसे ज्यादा पूजा लिंग रूपी पत्थर के रूप में ही की जाती है। लिंग शब्द को लेकर बहुत भ्रम होता है। संस्कृत में लिंग का अर्थ है चिह्न। इसी अर्थ में यह शिवलिंग के लिए इस्तेमाल होता है। शिवलिंग का अर्थ है : शिव यानी परमपुरुष का प्रकृति के साथ समन्वित-चिह्न।
ज्योतिर्लिंग : ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में पुराणों में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं। वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी ‘व्यापक ब्रह्मात्मलिंग’ जिसका अर्थ है ‘व्यापक प्रकाश’। जो शिवलिंग के 12 खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
क्या भांग और गांजा पीते हैं भगवान शिव?
इसका जवाब है नहीं। शिव पुराण सहित किसी भी ग्रंथ में ऐसा नहीं लिखा है कि भगवान शिव या शंकर भांग, गांजा आदि का सेवन करते थे। बहुत से लोगों ने भगवान शिव के ऐसे भी चित्र बना लिए हैं जिसमें वे चिलम पीते हुए नजर आते हैं। यह दोनों की कृत्य भगवान शंकर का अपमान करने जैसा है। यह भगवान शंकर की छवि खराब किए जाने की साजिश है।
यदि आपके घर, मंदिर या अन्य किसी भी स्थान पर भगवान शंकर का ऐसा चित्र या मूर्ति लगा है जिसमें वे चिलम पीते या भांग का सेवन करते हुए नजर आ रहे हैं तो उसे आप तुरंत ही हटा दें तो अच्छा है। यह भगवान शंकर का घोर अपमान है।
यह भी कितना दुखभरा है कि कई लोगों ने भगवान शंकर पर ऐसे गीत और गाने बनाएं हैं जिसमें उन्हें भांग का सेवन करने का उल्लेख किया गया है। कोई गीतकार या गायक यह जानने का प्रयास नहीं करता है कि इस बारे में सच क्या है। मैं जो गाना गा रहा हूं या गीत लिख रहा हूं उसका आधार क्या है?
यह तो छोड़िये बड़े बड़े पंडित भी शिव के मंदिरों में जब भांग का अभिषेक करते हैं तो फिर अन्य किसी पर दोष देने का कोई मतलब नहीं। ये सभी पंडित नर्क की आग में जलने वाले हैं। यह तो अब आम हो चला है कि शिवरात्रि या महाशिवरात्रि के दिन लोग भांग घोटकर पीते हैं। किसी को भांग पीने की मनाही नहीं हैं लेकिन शिव के नाम पर पीना उनका अपमान ही है।
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क्या भगवान शंकर को नहीं मालूम था कि गणेशजी पार्वती के पुत्र हैं? फिर उन्होंने अनजाने में उनकी गर्दन काट दी और फिर जब उन्हें मालूम पड़ा तो उन्होंने उस पर हाथी की गर्दन जोड़ दी? जब शिव यह नहीं जान सके कि यह मेरा पुत्र है तो फिर वह कैसे भगवान?
भगवान शिव के संपूर्ण चरित्र को पढ़ना जरूरी है। उनके जीवन को लीला क्यों कहा जाता है? लीला उसे कहते हैं जिसमें उन्हें सबकुछ मालूम रहता है फिर भी वे अनजान बनकर जीवन के इस खेल को सामान्य मानव की तरह खेलते हैं। लीला का अर्थ नाटक या कहानी नहीं। एक ऐसा घटनाक्रम जिसकी रचना स्वयं प्रभु ही करते हैं और फिर उसमें इन्वॉल्व होते हैं। वे अपने भविष्य के घटनाक्रमों को खुद ही संचालित करते हैं। दरअसल, भविष्य में होने वाली घटनाओं को अपने तरह से घटाने की कला ही लीला है। यदि भगवान शिव ऐसा नहीं करते तो आज गणेश प्रथम पूज्जनीय देव न होते और न उनकी गणना देवों में होती।
विशेष दार्शनिक क्षेत्रों में माना जाता है कि लीला ऐसी वृत्ति है जिसका आनन्द प्राप्ति के सिवा और कोई अभिप्राय नहीं। इसीलिए कहते हैं सृष्टि और प्रलय सब ईश्वर की लीला ही है। अवतार धारण करने पर इस लोक में आकर भगवान् जो कृत्य करते हैं, उन सब की गिनती भी लीलाओं में ही होती है। लोक व्यवहार में वे सब कृत्य जो भगवान् के किसी अवतार के कार्यों के अनुकरण पर अभिनय या नाटक के रूप में लोगों को दिखाए जाते हैं।
भगवान राम को सभी कुछ मालूम था कि क्या घटनाक्रम होने वाला है। उन्हें मालूम था कि मृग के रूप में आया यह राक्षस कौन है। लेकिन सीता ने उनकी नहीं मानी और तब उन्होंने लक्ष्मण को सीता के पहरे के लिए छोड़ कर मृग के पीछे चले गए।
इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तू किसी को नहीं मार रहा है। यह सब पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं। अब तो यह बस खेल है। बर्बरिक से जब महाभारत का वर्णन पूछा गया तो उसने कहा कि मुझे तो दोनों ही ओर से श्रीकृष्ण ही यौद्धाओं को मारते हुए नजर आ रहे थे। इसी तरह कहा जाता है क सहदेव को महाभारत का परिणाम मालूम था लेकिन श्रीकृष्ण ने उन्हें चुप रहने के लिए कहा था। यही तो लीला है।
क्या शिव-पार्वती हैं ‘आदम और ईव’?
भगवान शंकर को आदिदेव भी कहा जाता है। शंकर के दो पुत्र थे, गणेश और कार्तिकेय। जैसा कि कहा गया है कि आदम के दो पुत्र कैन और हाबिल थे। कैन बुरा और हाबिल अच्छा। पार्वती ही क्या ईव है। कुछ विद्वानों का मानना है कि स्वायंभुव मनु और शतरूपा ही आदम और हव्वा थे।
शिव का पहला विवाह राजा दक्ष की पुत्री सती से हुआ था जो आग में कूद कर भस्म हो गई थी। उनका दूसरा विवाह पर्वतराज हिमालय की पुत्री उमा से हुआ जिन्हें पार्वती कहा जाता है। पार्वती से उनको एक पुत्र मिला।
प्रमुख रूप से शिव के दो पुत्र थे, गणेश और कार्तिकेय। गणेशजी की उत्पत्ति कैसे हुई यह सभी जानते हैं। यह शिव और पर्वती के मिलन से नहीं जन्में। शिव के दूसरे पुत्र कार्तिकेय का जन्म शिव-पार्वती मिलन से हुआ। शिव का एक तीसरा पुत्र था जिसका नाम विद्युत्केश था। विद्युत्केश अनाथ बालक था जिसे शिव और पार्वती ने पालपोस कर बड़ा किया था। इसका नाम उन्होंने सुकेश रखा था। शिवजी का एक चौथा पुत्र था जिसका नाम था जलंधर। भगवान शिव ने अपना तेज समुद्र में फेंक दिया इससे जलंधर उत्पन्न हुआ। जलंधर शिव का सबसे बड़ा दुश्मन बना। इस तरह शिव के और भी कई पुत्र थे। जैसे अंधक, सास्तव, भूमा और खुजा। शिव की कथा और आदम की कथा में जरा भी मेल नहीं है।
शिव और पार्वती को आदम और हव्वा सिद्ध करने वाले मानते हैं कि ईडन गार्डन श्रीलंका में था। श्रीलंका आज जैसा द्वीप नजर आता है यह पहले ऐसा नहीं था। यह इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा और भारत से जुड़ा हुआ था। वे कहते हैं कि शिव और पार्वती भी कैलाश पर्वत से श्रीलंका रहने चले गए थे जबकि कुबेर ने उन्हें सोने की लंका बनवाकर दी थी। हजरत आदम जब आसमान की जन्नत से निकाले गए तो सबसे पहले ‘हिंदुस्तान की जमीं’ पर ही उतारे गए, जहां उन्होंने सबसे पहले कदम रखे उसे आदम चोटी कहते हैं। माना जाता है कि ह. आदम अलै. का ‘तनूर’ हिंद में था। माना जाता है कि कश्मीर ही उस दौर का स्वर्ग (जन्नत) था। वहां आज भी सेबफल की खेती होती है। इस प्रकार की ओर भी रोचक खबरे जानने के लिए हमारी वेबसाइड ”Samchar buddy” से जुड़े रहे।