क्रिकेट के लिए जूनून ऐसा था कि घर तक छोड़ दिया, और छा गए क्रिकेट की दुनिया में किशन ईशान, कई राते भूखे पेट गुज़ारी, और आज है…

कहते है कि, अगर जूनून सच्चा हो , तो सपने पुरे ज़रुर हो जाते है। और सफलता मिलती ज़रूर है। चाहे फिर देर से मिले , मिलती ज़रूर है। सपनो के प्रति सही जूनून होना सही बात होती है। अगर कोई व्यक्ति ठान ले, तो हर मुश्किल आसान लगने लगती है। और राह मिल ही जाती है। वैसे अगर हम क्रिकेट की बात करे तो, इसके प्रति भी लोगों का पागलपन कुछ अलग ही देखने को मिलता है। और क्रिकेट देखने वाले भी इस दुनिया में बहुत है। जो कि क्रिकेट के लिए एक अलग ही जस्बा और राय रखते है। वैसे अगर हम क्रिकेटर्स की बात करे , तो इन्हे भी पहचान बनाने के लिए कम संघर्ष नहीं करना पड़ता है। बल्कि इनका जीवन भी संघर्षो से भरा हुआ होता है। और इनकी कहानी भी हम जीवन के असली मतलब को समझ सकते है। आज हम जिस क्रिकेटर की कहानी आपके साथ शेयर करने वाले है , उनका नाम है किशान ईशान। जिन्होंने करीब12 साल तक सिर्फ अपने सपने को पूरा करने के लिए घर से दूर रहे।

क्रिकेटर किशन ईशान का जन्म बिहार के नवादा में साल 1998 में हुआ था।
क्रिकेटर किशन ईशान का जन्म बिहार के नवादा में साल 1998 में हुआ था।

बिहार में जन्मे है किशान ईशान

बता दे कि, क्रिकेटर किशन ईशान का जन्म बिहार के नवादा में साल 1998 में हुआ था। उन्होंने सिर्फ 7 साल की उम्र से ही क्रिकेट खेलना शुरु कर दिया था। और उनका जूनून क्रिकेट के प्रति इतना था। कि उनके कोच ने उनकी प्रतिभा को पहचान कर उन्हें तराशा। और अपनी जिम्मेदारी पर ईशान के पिता जी को मनाया की वो ईशान को रांची भेजे ,वहां पर ईशान अपने क्रिकेट के हुनर को बेहतर कर सके, और एक बेहतर भविष्य भी बना सके।

 ईशान कई राते सोये रांची में भूखे
ईशान कई राते सोये रांची में भूखे

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किशन ईशान कई राते सोये रांची में भूखे

बता दे कि, जब ईशान सिर्फ 12 साल के थे। तो उनके पिता ने बड़े ही कठोर मन के साथ उन्हें रांची क्रिकेट खेलने के लिए भेजने का फैसला लिया। और उन्होंने वहां पर बहुत मेहनत करके अपने आप को संवारा। और उनका सिलेक्शन रांची में जिला क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए हुआ। जिसमे उन्हें रहने के लिए एक क्वार्टर भी मिल गया।लेकिन ईशान को खाना बनाना नहीं आता था, तो वे बर्तन धुलने का काम करते थे। लेकिन ईशान ने कुछ राते भूखे पेट रहकर भी गुज़ारी है। उनके पिता जब उन्हें रांची मिलने आये थे। तो वे सिर्फ कभी कभार चिप्स या कोकाकोला पीकर ही गुज़ारा करते थे।

जब ईशान सिर्फ 12 साल के थे। तो उनके पिता ने बड़े ही कठोर मन के साथ उन्हें रांची क्रिकेट खेलने के लिए भेजने का फैसला लिया।
जब ईशान सिर्फ 12 साल के थे। तो उनके पिता ने बड़े ही कठोर मन के साथ उन्हें रांची क्रिकेट खेलने के लिए भेजने का फैसला लिया।

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