कई ऐसे हालात हमारे सामने आजाते है कि व्यक्ति टूट जाता है , या बिखर जाता है। लेकिन वो सफतला ही क्या, जिसमे मुश्किलों का साथ न हो, जी हाँ हमारे जीवन में बहुत सी मुश्किलें तो ऐसी आजाती है, जो पहाड़ बनकर ही ठोस रहती है, लेकिन कई लोग ऐसे होते है ,कि जो उन मुश्किलों से न सिर्फ लड़ते है ,बल्कि उनसे लड़कर जीत भी हासिल कर लेते है। अब मुश्किलें कई तरह से हमारे सामने होती है ,या तो शारीरिक या फिर मानसिक। शारीरिक समस्या के चलते बहुत सी दिक्क्तों का सामना करना पड़ जाता है, लेकिन फिर भी कई लोग इन चीज़ो से लड़ते भी है और एक मुकाम भी हासिल करते है। ऐसी ही एक शख्सियत है, राजस्थान में जन्मे मनीराम शर्मा, जो कि मज़दूर पिता की संतान थे, इनका जन्म एक गरीब में हुआ था , और लेकिन इनकी सबसे बड़ी समस्या थी, कि बचपन में ही मनीराम शर्मा की सुनने की क्षमता चली गयी थी। लेकिन इसके बाद भी इन्होने हार नही मानी, और पहले एक एक प्रोफेसर बने, और फिर बने एक सफल आईएएस अधिकारी।
5 साल की उम्र में मनीराम शर्मा खोने लगे थे सुनने की क्षमता
मनीराम शर्मा सिर्फ 5 साल के थे, जब उनकी सुनने की क्षमता खत्म होने लगी, और धीरे धीरे उन्हें सुनना बंद होने लगा। और 9 साल की उम्र में उन्हें पुरी तरह से सुनना बंद हो गया था। उसके बाद उन्हें काफी परेशानियो का सामना करना पड़ा, लेकिन वो डिगे नहीं, और हार नहीं मानी। और जैसे तैसे करके अपना स्कूल पूरा किया। और जब मनीराम शर्मा ने 10 वी की परीक्षा पास की, तो उनके पिता बहुत खुश हुए, और उनके पिता ने सोचा कि अब मेरे बेटे को एक चपरासी की नौकरी तो मिल ही जायेगी ,और जब वो मनीराम को साहब के पास लेकर गए तो, उन साहब अधिकारी ने ये कहते हुए मना कर दिया कि” सुन नहीं सकता, चपरासी कैसे बनेगा?” और ये बातो से उनके पिता बहुत आहत हो गए।
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मनीराम ने अधिकारी बनकर दिखाया
मनीराम शुरू से ही पढ़ने में अच्छे थे ,इसलिए उन्होंने पढ़ाई लिखाई के बाद टूयूशन पढ़ाया और फिर लेक्चरर बन गए। और इसके बाद उन्होंने अपनी राह खोज ही ली, उन्होंने अंत में UPSC की परीक्षा के बारे में सोचा, और तैयारी करने लगे, जिसके बाद उन्होंने पुरे मन से पढ़ाई की। और उनका सलेक्शन तो हुआ था, लेकिन बाधिर होने की वजह से उन्हें कोई पद नहीं मिला ,लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। और अपनी मेहनत से पैसे इक्क्ठे करके अपना इलाज करवाया। और ऑपरेशन के बाद उन्हें फिर से सुनना शुरू हुआ। और वो आईएएस बन गए।
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