“एक उम्र निकल गयी घर बसाने में, अब वक़्त है कि खुद कुछ कर गुज़रु”, इन पंक्तियों को सही साबित किया है महाराष्ट्र की इन सुपर दादियो ने, गुलाबी लिबाज़ पहनकर जाती है, स्कूल

कहते है कि, पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती है। और इंसान के अंदर अगर पढ़ने की इच्छा है, तो वह अपने मजबूत इरादे के साथ आगे बढ़ सकता है। और जीवन में उंचाईयों को छू सकता है। चाहे फिर कोई भी हालात क्यों न हो, व्यक्ति सफलता प्राप्त कर ही लेता है। और यही किसी भी हिम्मती इंसान की पहचान और खासियत होती है । आज की कहानी है कुछ ऐसी महिलाओ के, जिन्होंने उम्र के अनुभवी पड़ाव को पार करके अदुतीय सफलता की इबारत लिख डाली है। और वो करीब 60 से 70 की उम्र में भी होकर पढ़ रही है। और ये बहुत ही खास बात है क्योकि इस उम्र में भी पढ़ाई की ललक होना बहुत बड़ी बात है।और ये अपने आप में ही बहुत खास बात है। क्योकि उम्र के इस पड़ाव में जहाँ एक ओर इंसान सिर्फ आराम के बारे में सोचता है, वहीँ पर कुछ लोग इन दादी नानी जैसे पढ़ाई करने के बारे मे सोचते है। आईये आजीबाईची शाला की कहानी के बारे में स जानते है।

महाराष्ट्र की है ये सुपर दादी और नानी
महाराष्ट्र की है ये सुपर दादी और नानी

 महाराष्ट्र की है ये सुपर दादी और नानी

बता दे कि ये सुपर नानी और दादी महाराष्ट्र की रहने वाली है। और उन्होंने पढ़ाई की इच्छा जतायी थी। महाराष्ट्र के फगने गांव की रहने वाली 70 वर्षीय दादी पढ़ना चाहती थीं। ‘मेरी इच्छा थी कि कम से कम में धार्मिक किताबें पढ़ पाती” और ऐसा कहते हुए उन दादी ने अपनी पढ़ाई की इच्छा जताई थी। और उन्ही की बदौलत ओर भी बुजुर्ग महिलाओं ने पढ़ने की इच्छा को अग्रसर किया है। और आज दादी और नानी मिलकर पढ़ाई के लिए पैगाम दे रही है।

साल 2016 में महिला दिवस के अवसर पर "आजीबाईची शाला" के नाम से शुरू हुई एक एक पाठशाला की
साल 2016 में महिला दिवस के अवसर पर “आजीबाईची शाला” के नाम से शुरू हुई एक एक पाठशाला की

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“आजीबाईची शाला” के नाम से शुरू हुई एक एक पाठशाला की

साल 2016 में महिला दिवस के अवसर पर ठाणे जिले में स्थानीय जिला परिषद शिक्षक और कार्यकर्ता, बांगर ने इन दादी और नानियो के लिए शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए “आजीबाईची शाला” की पाठशाला की शुरुआत की है , और आज इस पाठशाला में 60 से 90 वर्ष तक की महिलाय पढ़ती है। और उनकी संख्या करीब 35 है।

"आजीबाईची शाला" के नाम से शुरू हुई एक एक पाठशाला की
“आजीबाईची शाला” के नाम से शुरू हुई एक एक पाठशाला की

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