बचपन में ही उनके सर से माता पिता का सांया उठ गया था। और खर्चा चलाने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया। और कोसली भाषा के सबसे प्रसिद्ध कवि हलधर नाग जी आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है। उन्हें साल 2016 में पदम् श्री पुरुस्कार से सम्मानित भी किया गया था। और उनके द्वारा लिखी गयी कृतियां आज भी यादगार है। ओडिशा में हलधर नाग का जन्म हुआ। एक गरीब परिवार में जन्मे हलधर नाग की कुछ ज़्यादा अपेक्षाये नहीं थी। उन्हें पढ़ना बहुत पसंद था। और 71 वर्षीय हलधर नाग की पद्म श्री तक की यात्रा उन्होंने कैसे तय की ? आईये जानते है।
कौन है हलधर नाग जी
बता दे कि हलधर नाग कोसली भाषा के प्रसिद्ध कवि है। और उनका जन्म साल 1950 में ओडिशा के एक गरीब परिवार में हुआ था। हालांकि मजबूरियां बहुत रही लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। गरीबी की मार तो पहले ही थी। उस पर से मज़बूरी में उन्हें अपनी पढ़ाई तीसरी कक्षा में ही छोड़नी पड़ी। और दुःख का पहाड़ भी टूट पड़ा, जब उनके10 वर्ष की उम्र में उनके माता पिता चल बसे थे। और वो असहाय हो गए थे। और उनका जीवन एक अनाथ की तरह ही गुज़रा था।
ढाबे पर साफ किये झूठे बर्तन
माता पिता के चले जाने के बाद हलधर नाग का जीवन तंग हो गया था। और उन्होंने कई सालो तक एक ढाबे पर झूठे बर्तन तक साफ किये थे। और उसी से उनका गुज़ारा चलता था। और उस वक़्त खाने पीने तक की बहुत दिक्क़ते थी। लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत जारी रखी। और अपने आप को आत्मनिर्भर बनाया। और मजबूत बनाया।
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1000 रुपए क़र्ज़ लेकर खोली दुकान
हलधर ने कुछ समय के बाद एक स्कूल में बावर्ची के रूप में भी काम किया। और करीब 16 साल काम करने के बाद उन्होंने उसी स्कूल के सामने 1000 रुपए किसी से कर्ज़ा लेकर दुकान खोल दी। और दुकान में किताबो और पेंसिल और बच्चो के स्कूल का सामान रखकर बेचते। और इस दौरान स्वयं भी कुछ कुछ न कुछ पढते रहते थे। और यही से उनकी दबी हुई जिज्ञासा आगे आयी। और उन्होंने पढना शुरू किया। और अपने विचारो को शब्दों में उतारा। और वो कविताये भी लिखने लगे। और उनकी लिखी हुई कविताए बहुत फेमस हो गयी। और वो कोसी भाषा के प्रसिद्ध कवी बन गए। और उन्हें पद्म श्री से सम्मानित भी किया जा चुका है।
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