23 साल के थे जब उनकी आँखों की रौशनी चली गयी थी, लेकिन दे रहे है दुसरो के जीवन में उजाला, पहले एक ठेले से की थी शुरुआत, अब बना लिया करोड़ो का..

अक्सर हर इंसान को कभी न कभी किसी न किसी मज़बूरी के चलते परेशानियों का सामना करना पड़ता है। चाहे कुछ भी हो जाए, हर इंसान को कुछ न कुछ शारीरिक समस्या से जूझना पड़ता है। और मुश्किल का सामना करना ही पड़ा है। लेकिन मुश्किल हालातो में कई लोग हार मानकर बैठ जाते है। और हर तरह से खुद को हारा हुआ महसूस करते है। लेकिन आगे वही बढ़ते है, जो खुद को हर हाल में मजबूत बनाकर आगे बढ़ते है। और जीतते भी वही है। इसीलिए हमे हर मुश्किल का समाधान निकालने के लिए प्रयास करना चाहिए। वैसे आज की कहानी भी कुछ इस तरह की ही है। आज हम बात करेंगे भावेश भाटिया की , जिनकी 23 की उम्र में अपनी आँखों की रौशनी खो दी थी। और अब वे अपने ही जैसे कई नेत्रहीन लोगो को रोज़गार दे रहे गई। और उनका जीवन संवार रहे है। आईये उनकी कहानी के बारे में जानते है।

आज भावेश अपने साथ साथ कई युवाओ को रोज़गार दे रहे है
आज भावेश अपने साथ साथ कई युवाओ को रोज़गार दे रहे है

20 की उम्र में जाने लगी थी आँखों की रौशनी

बता दे कि, भावेश भाटिया को ये आँखों की रौशनी खत्म होने की समस्या पहले से नहीं थी। उनकी आँखे जवानी तक ठीक थी। लेकीन 20 की उम्र में आते आते उनकी आँखों की रौशनी कम होने लगी थी। और उन्होंने कॉलेज में पढ़ने मे बहुत दिक्क्त होने लगी थी। जिसके कारण उन्हें किताबे नहीं दिखती थी। और इस हालत में उनकी माँ ने उनकी किताबे पढ़ने में मदद की थी। जैसे ही वे 23 की उम्र में उनकी आखों के आगे अँधेरा छाने लगा था। और वे नेत्रहीन हो गए। लेकिन उनकी माँ ने उनकी हिम्मत बढाए रखी थी।

गरीब परिवार में जन्मे थे भावेश
गरीब परिवार में जन्मे थे भावेश

गरीब परिवार में जन्मे थे भावेश

बता दे कि, भावेश भाटिया जी एक एक गरीब परिवार में हुआ था। और वे महाराष्ट्र के लातूर जिले के सांगवी गांव से सम्बन्ध रखते है। और उनकी आँखों की रौशनी जाने के बाद उनकी माँ ने उनसे कहा कि, तुम कुछ ऐसा काम करो कि लोग तुम्हारी तारीफ करे। सिर्फ तुम्हे देखे, इस बात को भावेश ने बहुत गहराई से मन में बसा लिया था। और उन्होंने इस बात को अपने जीवन में उतार लिया था।

शुरू किया खुद का स्टार्ट अप
शुरू किया खुद का स्टार्ट अप

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शुरू किया खुद का स्टार्ट अप भावेश भाटिया

बहुत कुछ झेलने के बाद भी भावेश ने आखिर में अपने पैरो पर खड़े होने की ठानी थी। और उन्होंने नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया। और वहीँ से प्रशिक्षण लिया था। उसके बाद उन्होंने खुद का काम शुरू करने के बारे में सोचा था। और उन्होंने मोमबत्ती बनाने का काम शुरू किया। जिसमे उनकी पत्नी नीता ने उनका साथ दिया। आज भावेश अपने साथ साथ कई युवाओ को रोज़गार दे रहे है।और करोडो का मुनाफा भी माँ कमा चुके है।

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