“माँ में जज बन गयी” ये सिर्फ शब्द नहीं है, एक माँ के संघर्ष का परिणाम है, सब्जी बेचने वाली की बेटी बन गयी सिविल जज, तीसरे प्रयास में मिली सफलता

सपने एक ऐसी हिम्मत देते है ,जिनसे हम हर संभव हिम्मत मिलती है। और हम कभी न कभी अपने सपनो को पूरा करने के लिए प्रयास करते ज़रूर है। लेकिन सपने उसी के पुरे होते है, जो उसके लिए पुरे मन से निरंतर मेहनत करता है। और गरीबी जैसे अभिशाप को भी पीछे छोड़कर अपना एक मुकाम हासिल किया है ,ऐसी ही एक बेटी है इंदौर में जन्मी अंकिता नागर ने कुछ ऐसा ही काम किया ,जिसे सुनकर आप भी हैरान हो जाएंगे, क्योकि अंकिता नागर की माता जी ने सब्जी लगाकर उन्हें पाला पोसा। और बड़ा किया और अपनी अपनी बेटी को सिविल जज बना दिया। और अंकिता ने भी उनकी मेहनत का पूरा मान रखते हुए सफलता हासिल की थी। आईये जानते है उनकी सफलता की कहानी।

अंकिता ने सिविल जज की परीक्षा में 5 वा स्थान प्राप्त करके रोशन किया है।
अंकिता ने सिविल जज की परीक्षा में 5 वा स्थान प्राप्त करके रोशन किया है।

इंदौर से है अंकिता नागर

बता दे कि, अंकिता नागर इंदौर के मूसाखेड़ी के पास सीताराम पार्क कॉलोनी की रहने वाली वाली है। और उनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। और अंकिता नागर के माता पिता के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो अपनी बेटी को महंगी कोचिंग करवा सके। और इसलिए उन्होंने बड़ी मुश्किल से सब्जी बेचकर ही अपनी बेटी अंकिता को पढ़ाया। और उनकी बेटी ने भी पूरी लगन से मेहनत करके जज की परीक्षा पास की थी। और सिविल जज बन गयी है।

सब्जी बेचकर पढ़ाया माता पिता ने अंकिता को
सब्जी बेचकर पढ़ाया माता पिता ने अंकिता को

सब्जी बेचकर पढ़ाया माता पिता ने

अंकिता नागर एक गरीब परिवार से आती है। और उनके माता पिता घर खर्च चलाने के लिए भी सब्जी बेचकर काम करते थे। और अंकिता का भाई भी रेत छानकर मज़दूरी करता है। और अंकिता ने सिविल जज की परीक्षा में 5 वा स्थान प्राप्त करके रोशन किया है। और उन्होंने अपने माता पिता के नाम को रोशन किया है। और सिविल जज बनकर अब वो सारी मज़बूरी को भी खत्म कर दिया है।

अंकिता नांगर ने अपनी पढ़ाई के साथ साथ अपने माता पिता के साथ सब्जी के ठेले पर भी मदद की है।
अंकिता नांगर ने अपनी पढ़ाई के साथ साथ अपने माता पिता के साथ सब्जी के ठेले पर भी मदद की है।

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माता पिता की की भी ठेले पर मदद

अंकिता नांगर civil judge ने अपनी पढ़ाई के साथ साथ अपने माता पिता के साथ सब्जी के ठेले पर भी मदद की है। और पढ़ाई के बीच में जब भी उन्हें समय मिलता था, तो वो अपने माता पिता की मदद करने के लिए आ जाती थी। और उन्होंने अपने माता पिता की तपस्या को भी सफल कर दिखाया है।

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