आज के वर्त्तमान समय में हम कहीं भी आते जाते है। तो ज्यादातर मोटर गाड़ी का इस्तेमाल करते है। या फिर प्लेन आदि से हवाई सफर करते रहते है। आजकल मॉडर्न युग चल रहा है। हर कोई एडवांस ये हो गया है। ज़िंदगी जीने के तरीके बदल गए है। और धीरे धीरे सब नया हो गया है। लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब हम बचपन में साइकिल चलाने के लिए तरस्ते थे। लेकिन समय बदला, लोग बदले , लोगों के तरीके बदले और बदल गया जीने का तरीका। जिस साइकिल को चलाने के लिए कभी रेस लगा करती थी। और साइकिल से अक्सर बाहर घूमने का मज़ा ही दुगना हो जाता था। हीरो साइकल्स जो सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली ब्रांड है। उसे ब्रांड किसने बनाया होगा ?और साइकल्स का क्रेज सर चढ़कर बोलता था। आईये जानते है हीरो की साइकल्स के आविष्कारक मुंजाल भाई के बारे में।
हिन्दुतान के बंटवारे की है कहानी
ये हीरो साइकल्स मुंजाल भाई की कहानी शुरू होती है। जब भारत का बंटवारा हो रहा था और पाकिस्तान के कमालिए में रह रहे बहादुर चंद मुंजाल और ठाकुर देवी जी के घर जन्मे सत्यानंद मुंजाल, ओमप्रकाश मुंजाल, ब्रजमोहनलाल मुंजाल और दयानंद मुंजाल (मुंजाल भाई) उनके चार बेटे थे। और उनके पिता बहादुर मुंजाल जी जो की एक अनाज की दुकान पर काम कर रहे थे। उससे घर का खर्च ठीक ठाक चल जाता था। स्तिथि एकदम सही थी। लेकिन तभी देश की बंटवारे की खबर आ जाती है। और देश के वासी हिन्दू मुस्लिम में बंट जाते है। और फिर मुंजाल परिवार भी पहुँचता है भारत जहाँ पर उनके साथ भीड़ में शामिल थे कई सारे परिवार भी।
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मुंजाल भाई के लिए सबसे बड़ी समस्या बनी रोज़गार की… लेकिन
बंटवारे के बाद मुंजाल भाइयो के लिए सबसे बड़ी समस्या थी रोज़गार की।और बंटवारे के बाद ये मुंजाल भाई पहुंचे भारत के लुधियाना शहर में और जहाँ उन्होंने साइकिल के पुर्ज़े बेचने का काम किया। और उनका ये काम सही चल पड़ा धीरे धीरे उन्हें फायदा होने लगा। और उन्होंने थोक रेट पर पुर्ज़े खरीदकर बेचना शुरू कर दिया। और मुनाफा कमाने लगे।
50 हज़ार के लोन से मुंजाल भाई नेशुरू किया व्यापार
बाद में जब काम धीरे धीरे अच्छा चलने लगा तो मुंजाल भाइयों ने बैंक से करीब 50 हज़ार रुपए का लोन उठाया और साइकल्स के पुर्ज़े थोक रेट पर खरीदकर खुद ही साइकल्स बनानी शुरू की। और उन्होंने बना दिया हीरो साइकल्स ब्रांड।जो उस समय क हर घर में गुन्ज उठा। और हिंदुस्तान क लगभग हर घर में हीरो की साइकल्स बिकने लगी।
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